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मुट्ठी और रंग / अनुराधा ओस
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जिस रोज मुझे लगने लगेगा
मेरी हथेलियों में दबा बीज उग आया हैं
कनेर का पेड़ बन
उस दिन एक इंच और बढ़ जाएगी
मुस्कान धरती की
जिस रोज मुझे लगने लगेगा
मेरी मुट्ठी में पानी का रंग कुछ ज्यादा फिरोजी है
उस दिन नदी के दर्रे भर देगा आँखो का पानी
'जिस दिन मुझे लगेगा मेरी हथेलियाँ किसी सोख्ते में बदल चुकीं हैं
उस दिन सदी के घाव को भर देंगे स्वप्नों के रंग से'
जिस दिन बुलबुल ने अपना घोंसला बनाया तुलसी के पेड़ पर
उस दिन प्रकृति महसूस करती है
धरती पर सबके लिए बची है छाँव कहीं॥