भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हारी हथेलियाँ / अनुराधा ओस
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:19, 30 अप्रैल 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुराधा ओस |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तुम्हारी पसीजी हथेलियों को
छूती हूँ
तो महसूस करती हूँ
बारिश का सौंदर्य
जब पहाड़ की चोटी पर
खिले पलाश को देखती हूँ
महसूस होती है संघर्ष की परिभाषा
जब तुम्हारी आँखों में देखती हूँ
लगता है बह रही हो नदी
कंपकंपाती सी
जैसे अनगढ़ सौंदर्य प्रेम का
और तुम्हारा मौन
रेल की सीटियों सा
महसूस करती हूँ॥