भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चमकीले पत्थर / पॉल सेलन / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:11, 12 मई 2023 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तेज़ हवाओं का सामना करते हैं पत्थर
हो जाते हैं चमकदार सफ़ेद
रोशनी लाते हैं पत्थर

पत्थर नहीं चाहते
नीचे उतरना,
गिरना भी नहीं चाहते वे
न ही चोट खाना चाहते हैं ।
कोमल जंगली गुलाबों की तरह खिलते हैं वे
बहते हैं तुम्हारी तरफ़,
ओ मेरी शान्त प्रिया !
मेरी सच्ची प्रिया !

तुम उन्हें जोड़ती हो
इकट्ठा करती हो तुम उन्हें
अपने उन कोमल हाथों से
दूसरों के हाथों की तरह हैं जो,
तुम उन्हें और चमकाना चाहती हो ।

उनके लिए किसी को रोने की ज़रूरत नहीं है
न ही उन्हें नया नाम देने की कोई ज़रूरत है ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यह कविता अँग्रेज़ी अनुवाद में पढ़िए
Paul Celan
The Bright Stones

The bright
stones pass through the air, the bright-
white, the light-
bringers

They don’t
want to come down, nor fall,
nor hit. They open
up
like humble
dog roses, that’s how they open,
they float
toward you, my quiet one,
you, my true one —:

I see you, you gather them with my
new, my
everyman’s hands, you put them
into the Bright-Again no one
has to weep for or name.

Translated by Pierre Joris


लीजिए, अब इसी कविता का रूसी भाषा में अनुवाद पढ़िए
                     Пауль Целан
                   Светлые Камни

Светлые
камни проходят сквозь воздух, свет-
лобелые, све-
тоносцы.

Им нужно
не рушиться, не низвергаться,
не метить. Они
раскрываются,
как мелкий шиповник, вот так они распускаются,
так парят они
к тебк, моя тихая,
моя верная —:

Я вижу тебя, ты их собираешь моими
нынешними, моими
чьими-угодно руками, ты ставишь их
и еще-раз-сиянье, какого никто
не обязан оплакивать, не должен  именовать.

Перевод : Ольга Седокова


लीजिए, अब यह कविता मूल जर्मन भाषा में पढ़िए
           Paul Celan
      Die Hellen Steine

Die hellen
Steine gehn durch die Luft, die hell-
weißen, die Licht-
bringer.

Sie wollen
nicht niedergehen, nicht stürzen,
nicht treffen. Sie gehen
auf,
wie die geringen
Heckenrosen, so tun sie sich auf,
sie schweben
dir zu, du meine Leise,
du meine Wahre—:

ich seh dich, du pflückst sie mit meinen
neuen, meinen
Jedermannshänden, du tust sie
ins Abermals-Helle, das niemand
zu weinen braucht noch zu nennen.