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सखा तुम खूब मिले / दीपा मिश्रा
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बैठी थी तम से घिरी
व्याकुल मन व्यथित तन
तान बंसी की सुनाकर
हर लिया मेरा तिमिर घन
रास की रजनी सजा दी
खुल गए अब सारे बंधन
छोड़कर तोड़कर
बह चली मैं संग तेरे
जहां बह रही धार यमुना
मोर चकोर सुमन कोमल
वृक्ष सुशोभित कदंब से
झांकता चंद्र
मधुर यामिनी के मिलन में
खो गई तेरी सखी
पा लिया पूर्णत्व उसने
हो गई अब वह नई