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रामकली / सुरेन्द्र सुकुमार
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सीधी साधी भोली भाली एक कहानी रामकली
फटी फटाई ओढ़े रहती चूनर धानी रामकली
"मत" की भीख माँगने आते रोज़ गाँव में नेतागण
अच्छे-अच्छे वायदे करते एक न मानी रामकली
इक थैली के चट्टे-बट्टे अलग अलग झण्डे इनके
आँख चढ़ाकर बोले इनसे कड़वी वानी रामकली
रामकली तो एक नाम है सब गाँवों में रामकली
सब के पाँव बड़े हैं छोटी चादर तानी रामकली
एक दिना तो सबको जाना सबको ही तो मरना है
बार बार खुद को समझाती दुनियां फ़ानी रामकली