भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दो पृष्ठ / जय गोस्वामी / जयश्री पुरवार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:10, 21 जून 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जय गोस्वामी |अनुवादक=जयश्री पुरव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आकाश रखा हुआ था दो तहों में तहाकर ।

तह खोलते ही
भोर की दोनो आँखों से रश्मि आकर
बींध गई सन्ध्या काल के ललाट पर ।

अब परमेश्वर सस्नेह अपने दोनो हाथों से
यत्न से सज़ा रहे हैं आज के दिन की चिता
अभी - अभी चले गए हैं वे ।

अन्तिम दर्शन के लिए दिगन्त में आधा चाँद आकर
जैसे ही खड़ा हुआ,
उसने देखा,
पूरब और पश्चिम के
दोनो पृष्ठों पर
झिलमिला रही है मृत्यु की कविता !

जयश्री पुरवार द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित