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किताब / जय गोस्वामी / जयश्री पुरवार

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कहाँ तक पढ़ोगी मेरी यह किताब
नीले रंग की
हरेक पृष्ठ सूखे गरल से चिपका हुआ

बार बार जीभ पर
उँगली लगाकर ही खोलना पड़ेगा
हर पन्ना तुम्हें ।

लोग आएँगे तो देखेंगे
मेज़ पर अधखुली किताब
और उसकी बग़ल मे बैठी हो तुम ।

और वहाँ
बैठे - बैठे ही न जाने कब
निस्तब्ध हो गईं ।

जयश्री पुरवार द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित