Last modified on 22 जून 2023, at 16:01

दोपहर तीन बजे / कमला दास / रंजना मिश्रा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:01, 22 जून 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमला दास |अनुवादक=रंजना मिश्रा |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दोपहर तीन बजे
सिर्फ़ नींद में ही वह 
अपना नन्हे लड़के वाला अकेलापन दिखाता था 
जिससे मैं एक दोपहर एकाएक ही मिली 
मैं उसे जगाने की हिम्मत न कर सकी 
हालँकि हमारे साथ का समय सीमित था उन दिनों

मैं बैठी उधेड़बुन में उसे देखती रही 
सपनों की किन पेचीदी गलियों में वह घूम रहा था 
वह मासूम, अपनी लालसा में कितना किंकर्तव्यविमूढ़

अँग्रेज़ी से अनुवाद : रंजना मिश्र