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मेरे नन्हे इन्द्र / निदा नवाज़

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मेरे नन्हे इन्द्र !
तुम अपनी दलित जाति
क्षण भर के लिए भूल ही गए थे
तुम भूल ही गए थे
शम्बूक ऋषि की निर्मम हत्या
और छल से किया गया
एकलव्य का वध ।

तुम अपने को स्वतन्त्र समझने लगे थे
दरअसल घर - घर के झण्डों ने तुम्हें
भ्रमित किया था
तुम्हें भ्रमित किया था
आज़ादी के अमृत महोत्सव ने ।

मेरे नन्हे इन्द्र !
तुम्हारे जन्म से बहुत पहले
जन्म लिया था तुम्हारी जाति ने
वह एक ग़ुलामी का दाग़ है
जो शताब्दियों से तुम्हारे माथे पर
धर्म की दहकती आग से लिखा गया
इस दाग़ को पचहत्तर वर्षों की यह
तथाकथित आज़ादी नहीं मिटा सकी है
बल्कि सच तो यह है कि
इस आजादी में रह रहा द्रोणाचार्य
एकलव्य से अँगूठा मात्र नहीं
बल्कि पूरी ज़िन्दगी छीनने लगा है ।

मेरे नन्हे इन्द्र !
तुम्हारी मासूम प्यास
और उस तथाकथित सवर्ण की
पानी भरी मटकी के बीच का
फ़ासला मिटाने के लिए
हमारी यह आज़ादी
बाँझ साबित हो रही है ।

लेकिन, मेरे नन्हें इन्द्र !
तुम्हें आज नहीं तो कल
एकलव्य बनना ही होगा
और चुनोती देनी ही होगी
हर द्रोणाचार्य के साथ - साथ
जातिवाद के पक्षधर
हर झूठे अवतार को भी ।