भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक आत्मबोध / रणजीत

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:25, 1 जुलाई 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणजीत |अनुवादक= |संग्रह=कविता-समग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इसे तुम ज़िंदगी कहते हो!
इसे ही?
क्या ज़िंदगी सचमुच यही है
गंदगी या बंदगी कुछ और होना चाहिए था नाम इसका
ज़िंदगी तो यह नहीं है!