भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मार्च का पहला दिन / रणजीत

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:41, 1 जुलाई 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणजीत |अनुवादक= |संग्रह=कविता-समग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मार्च का पहला दिन: एक क्लर्क की दृष्टि में
आज इस तीसरे महीने की पहली तारीख को मैं खुश हूँ
आज मुझे अट्ठाईस के काम की एवज़ में
इकत्तीस की तनख्वाह मिली है
नाज़ है मुझे इन तीन दिनों पर, जो मैंने
ज़िंदगी के दामन से चुराये हैं
बरसों की मुट्ठी से छीने हैं,
महीनों के जबड़ों से खींचे हैं;
वक्त की जेब काटकर निकाले हैं।
ग़र मेरे हाथों में होता ये सालों का ढाँचा
एक एक साल में कई बार फरवरी सजाता
एक एक महीने के कई दिन चुराता
छुपाता
और खुश होता कि चलो
कुछ दिन और गुलामी के
बिना जिये,
बिना मेहनत किये,
बिना काटे कट गये।