का सत कल्प जिए / रणजीत
तुमने मुझे एक सप्ताह दिया है
पूरे सात दिन
इसके लिए तुम्हारा
शुक्रगुज़ार हूँ मैं!
सात दिन:
इस लंबी चौड़ी ज़िंदगी में बहुत तो नहीं हैं
पर सार्थक तो एक क्षण भी बहुत है
फिर ये तो दिन हैं
एक नहीं, दो नहीं, पूरे सात दिन।
जानता हूँ मैंने नहीं की है प्रतिज्ञाएँ
हाथों में हाथ लेकर
कि जब तक प्राण रहेंगे तन में, अलग न होंगे
पर तुम्हारा हाथ
जो मैं बिना बोले
बिना सौ कसमें उठाए
थाम अपने हाथ में
थामें रहा हूँ कुछ क्षणों तक
पूर्ण परमानंद जो मैं पा सका हूँ
मुक्ति की, कैवल्य की जो शांति मैं अपना सका हूँ
क्या वह ऐसी शांति नहीं थी?
जैसी गौतम ने पायी थी
बोधि वृक्ष की घनी छाँह में!
एक सप्ताह। वह बहुत है।
एक क्षण को भी अगर हम जी सकें पूरी तरह से
अंतिम बूँद तक उसकी यहाँ पर पी सकें
तो वह बहुत है
फिर ये तो दिन हैं
एक नहीं, दो नहीं, पूरे सात दिन
इनके लिए तुम्हारा
शुक्रगुज़ार हूँ मैं!