कौन-सा है देश मेरा / रणजीत
क्या यही हिमालय से सागर तक फैली
यह धरती ऊबड़ खाबड़ और बनैली
क्या इसके झाड़-झंखाड़ औ' कंकड़-पत्थर
नद-नाले, पहाड़-पठार, परत औ' बंजर
क्या इसके ये नगर और ये ग्राम
ये घास फूस की झोंपड़ियाँ ये धवल धाम
ये मिलों की धुवाँ उगलती चिमनियाँ लंबी
ये गगन को चूमती अट्टारियाँ दंभी
ये मशीनें कारखाने और ये बाज़ार
ये वैश्यालय, देवालय, कारागार
क्या यही है देश मेरा
औ इसी से प्यार मुझको?
यह नहीं है देश मेरा
देश मेरा हैं वे लाखों औ' करोड़ों
ज़िंदगी और मौत के संघर्ष में जो पिस रहे हैं
मेहनत की मजबूत अंगुलियों में जो रेती लेकर
किस्मत की फौलाद-लकीरें घिस रहे हैं
और जिनका हक़ नहीं है
इन खेतों पर खलिहानों पर
इन स्वर्ण उगलती खानों पर
उन श्रमरत इन्सानों के जीवन में
श्रम में देश मेरा साकार खड़ा है
बस यही है देश मेरा
औ इसी से प्यार मुझको।