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मिल न पाएंगे / अर्चना अर्चन

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पुराने ज़ख्म लफ्ज़ों की सुई से सिल न पाएंगे
ज़मीं दिल की हुई बंजर कि गुल अब खिल न पाएंगे

गले हमको लगाओ जब तो इस अंदाज़ में मिलना
कि अबकी बार जो बिछड़े कभी फिर मिल न पाएंगे
 
बड़े लोगों में अक्सर खासियत देखी है ये मैंने
बड़ी बातें बड़े अंदाज़ लेकिन दिल न पाएंगे

हमें मौजों से लड़ने का नया चस्का लगा जबसे
नहीं इस बात का डर के कभी साहिल न पाएंगे

सियासत साजिशों का, तिकड़मों का, जुल्म का फन है
कि होंगे कत्ल तो बेशक मगर कातिल न पाएंगे