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माफ किया तुम्हें / अर्चना अर्चन

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जाओ तुम्हें माफ किया मैंने
माफ किया तुमको
हर उस ख्वाब के लिए
जिसमें तुम शामिल थे
माफ किया तुम्हें
उन लम्हों के लिए
जब तुम मेरे पास न थे
माफ किया उस नमी के लिए
जो अब भी रहती है
अक्सर मेरी आंखों में
और उन आंसुओं के लिए भी
जो बाँध तोड़ देते हैं जब-तब
माफ किया तुम्हें
हर उस वादे लिए
जो झूठा निकला
तुम्हारी हर उस बात के लिए भी
जो महज दुनियादारी थी
मैंने माफ किया तुमको
उन तमाम अनींदी रातों के लिए
जो काटी हैं मैंने छत ताकते हुए
उन शामों लिए भी
गुज़री हैं जो नीम उदासी में
जाओ माफ किया तुम्हें
उस इंतज़ार के लिए
अब भी चुभता है जो
कलेजे में
और उस उम्मीद के लिए भी
जो सर पटकती रही
तुम्हारी चौखट पे
माफ किया तुम्हें
माफ किया
जाओ माफ किया।