सुनो!
उदास मत हुआ करो तुम
जानते हो जान,
डूबती शाम के होश उड़ा देती हैं
तुम्हारी उदास आंखें
रात बेवजह ही
नम हो जाती है
और
सुबह तक ओस बन
टपकती हैं
आकाश की भीगी पलकें
सुनो,
उदास मत हुआ करो प्लीज़
क्या कहूँ कि मुझमें
किस कदर खालीपन
भर देती है
तुम्हारी आवाज में उभरी
अजीब-सी खामोशी,
और नुमायाँ हो जाता है
हर एक बात में वह दर्द
जो तुम कह कर भी नहीं कहते
सुनो,
मेरी जान की दुश्मन हैं
उदासियाँ तुम्हारी
यकीन नहीं होता...?
कभी गौर करना
दो सांसों के बीच
जो वक्फा होता है न
जैसे खत्म ही नहीं होता
तुम्हारे उदास हो जाने पर
सुनो न...
चलो टांग आते हैं हम
इन उदासियों को
दूर कहीं किसी जंगल में
सबसे ऊंचे पेड़ की फुनगी पर
और वापसी में
मिटाते आएंगे, रास्ता बताने वाले सारे निशान।