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तुम्हारे ही लिए तो-2 / रणजीत

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मैं तुम्हारे ही लिए तो लिख रहा हूँ!
तुम जो नयनों में लिए हो नए युग का एक सपना
तुम जो गिट्टी फोड़कर कठिनाइयों की
खुद बनाते चल रहे हो मार्ग अपना
तुम जो मिट्टी गोड़कर इस आज की
आगत की मूरत गढ़ रहे हो
तुम जो अपने साथ ले इतिहास-रथ को बढ़ रहे हो
मैं तुम्हारे ही लिए तो लिख रहा हूँ!

तुम जो हिम्मत हार थक कर रुक रहे हो
तुम जो ज़ुल्मो-सितम आगे झुक रहे हो
तुम जो काली ताक़तों से डर रहे, घबरा रहे हो
तुम जो अब संघर्ष पथ को समझ कर दुर्गम,
सुलह की शाहराह पर आ रहे हो
मैं तुम्हारे ही लिए तो लिख रहा हूँ!

तुम कि जिनके हृदय में ज्वाला नहीं है
तुम जिन्होंने पलक पर अपनी
अनागत का सपन पाला नहीं है
तुम जो सहते जा रहे हो मुफ़लिसी की यह ज़लालत
तुम जो ज़िंदा मौत में हो पर नहीं करते बग़ावत
मैं तुम्हारे ही लिए तो लिख रहा हूँ!

हर चलने वाले की जीत गीत मेरे गा पाएँ
हर पथ पर थक रुकने वाले के क़दमों को सहला पाएँ
हर उसको जिसने चलने का मोल नहीं समझा
ये बोल मेरे चलने का राज़ सिखा पाएँ
बस इसीलिए तो कलम को रेती बनाकर
मैं तुम्हारे भाग्य की पत्थर-लकीरें घिस रहा हूँ
मैं तुम्हारे ही लिए तो लिख रहा हूँ!