भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मर्म की बात है नारी / नवीन दवे मनावत

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:35, 9 जुलाई 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन दवे मनावत |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उस शब्द की भांति
मौन रहती है नारी!
जिसे केवल लिखा जाता है
पीड़ा की कविता में!
सुना जाता है
शोक गीत की तरह
और
महसूस किया जाता है
सुखे आंसूओं की तरह
हर दिन!

उस शब्द रूपी नारी की पीड़ा अलौकिक है
केवल आभास होने तक!
लेकिन
यथार्थ में वह
उस पर्वत के समान है
जिसके इर्द-गिर्द हो सन्नाटा!
कुंठाग्रस्त हो हरियाली!
और केवल दिखायी देते हो
स्मृतियों के निर्झर!

नारी की रूह तक
शायद पहुँच सके हम
और पहचान सके उसके अंतर्मन की कविता
या कर सके अनुमोदन
उसकी नारीत्व का!

वह शब्द रूपी नारी
लड़खड़ाकर गिर पड़ती है
किसी निर्दय काग़ज़ पर
जिसके आर-पार कई
अनमने शब्द दिखते है
और
करते है व्यंग्य कि
नारी होना बहुत मुश्किल है
नारी मोह नहीं
मर्म की बात है