भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

असंख्य तारें / नवीन दवे मनावत

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:40, 9 जुलाई 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन दवे मनावत |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आसमान में
असंख्य तारों को देखकर
मुझे यह लगा कि ये
कितने समन्वय और सुलह
से एकतार है

शायद उनके द्वारा
नहीं पढी गई है
टूटन, रूठन, झूठन की बातें
या नहीं रहा परिसंवाद
ईर्ष्या-द्वेष के बीच,
शायद!
नहीं रहा होगा
तम को बिखरने का
प्रकाश समूह का समन्वय

मैं सोचता हूँ
न तो दीवार है ऐसी
उनके मध्य।
जो अक्सर धरती पर अलग करती है
मनुष्यता को!
बल्कि एक केन्द्र में रह
निभाते कर्तव्य
समय मर्यादा से हर क्षण
अनवरत असंख्य तारें।

मुझे क्षणिक चिंतन
को मजबूर करता है
उस ब्रह्मांड का वह एकांतिक क्षण
और
उन आकाश ओढ़कर सोये
जड़-चेतन का
जिसे नहीं पता हम जीवित है या मृत