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दर्पण / चित्रा पंवार

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तुम झूठ नहीं बोलते
कोरी आदर्शवादिता के काल्पनिक कंगूरे
तुम्हारी भाषागत मीनार को
अलंकृत नहीं करते
देह की नाजुकता के विपरीत
निर्भीक, निष्पक्ष, कठोर मिजाज के मालिक हो तुम
झूठे, आडंबरी नहीं
कायर, लालची भी नहीं हो
दर्पण तुम मेरे प्रिय कवि हो॥