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लड़कियाँ और धरती / पल्लवी विनोद

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लड़कियों के प्रेम और पिता की इज्जत के बीच व्युत्क्र्मानुपती सम्बन्ध होता है
लड़की को मिलने वाले अधिकार अभी भी उसे दिए जाते हैं
जो उसके जीवन में उपस्थित पुरुष की उदारता का प्रतीक है
लड़की का खिलखिलाना समाज द्वारा मिली वह भीख है
जो जब चाहें छीनी जा सकती है
लड़की को अपनी निपुणता सिद्ध करने के लिए हर कदम पर परीक्षा देनी है
विषय सूची कुछ भी हो सकती है
इसीलिए आज तक किसी पुरुष को अग्निपरीक्षा नहीं देनी पड़ी
इस विश्व के इतिहास में जुएँ में हारे किसी पुरुष के वस्त्र नहीं खींचे गए
तुम जब-जब महा युद्ध के नायकों की गाथाएँ कहते हो
पराजित पक्ष की स्त्रियाँ अपने फटे कपड़ों को-सी रही होती हैं

जब तुम कहते हो ना मेरी बेटी मेरा ग़ुरूर है
तुम्हारी बेटी अपने कोमल अहसासों से भरी डायरी जला देती है
उसे पता है ये बेटियों के गुणगान से भरे नारे तभी तक दोहराए जाएँगे
जब तक वह पिता और भाई की अनुचर बनी रहेंगी
प्रेम और पाखंड का फ़र्क़ पहचानती बेटियाँ सब समझती हैं फिर भी चुप हैं
धरती भी चुप रहती है अपने ऊपर होते असंख्य प्रहारों के बावजूद
उसे पता है जिस दिन विद्रोह का एक अंकुर निकलेगा उसके सीने को चीर
उस दिन ये धरती लड़कियों की कोमलता से पनपे पेड़ों का जंगल बन जाएगी।