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गोमती किनारे-1 / जया आनंद
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गोमती!
तुम बहती रही
और हम
तुम्हारे किनारों
पर बैठ
देखते रहे
तुम्हारी हर आती जाती
लहरों को
हर लहर के संग
एक कही-अनकही कहानी थी
गूंजती धुनें थीं
खनकती मुस्कुराहटें थीं
बातें थीं मुलाकातें थीं ...
गोमती!
तुम बहती रहीं
तुम्हारे साथ बहती रहीं
वो सुरमई शामें
वे सजीले दिन
तुम बहा ले गई
वे सारे इंद्रधनुषी पलों को
पर जो इन आंखों में ठहरे
क्या कभी उन्हें ले जा पाओगी अपने संग!