भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोशिश / जया आनंद
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:13, 17 जुलाई 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जया आनंद |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
प्रेम! जितना तुममें
डूबती गयी
तुम्हारी गहराई की
थाह पाना कठिन होता गया,
मौन भाष्य में अनुभूत हुआ
तुम्हारे समक्ष अभिव्यक्त हुआ
सरलीकृत होते-होते
होता गया क्लिष्ट,
समर्पण की झील में
एक ठहराव के साथ तरंगायित होता
अस्पष्ट झंझावातों से बिखरा-सा प्रतीत होता प्रेम
पर कहीं सुना है ' प्रेम खोया या पाया नहीं जाता
प्रेम तो जिया जाता है '
ये कोशिश जारी है