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तोड़कर अब पाँव की बेड़ियाँ / सत्यम भारती
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तोड़कर अब पाँव की बेड़ियाँ
चाँद को छूने लगी हैं बेटियाँ
ढूँढता फिरता है वो भी खामियाँ
कर रहा है रात-दिन जो गलतियाँ
आजकल महफूज दिखती हैं कहाँ
रक्स करती शाख की वो तितलियाँ
चार दिन के बाद ही मांगे बहू
मालकिन हूँ दे दो घर की चाबियाँ
वक़्त से पहले सयानी हो गयीं
जाल में फँसती कहाँ हैं मछलियाँ