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क़दम-क़दम दो चार आदमी / सत्यम भारती

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क़दम-क़दम दो चार आदमी
दिखते हैं लाचार आदमी

जो आता है छल कर जाता
किसे कहूँ मक्कार आदमी

नफ़रत-हिंसा में घिरकर अब
बन बैठा अख़बार आदमी

बिक जाते हैं दो कौड़ी में
बिकने को तैयार आदमी

हक़ से वंचित दिखता है
जिसका था हक़दार आदमी