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हँसते हैं पेड़ / राम नाथ बेख़बर
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हँसते हैं पेड़
खूब जोर-जोर से हँसते हैं
जब मनचली हवाएँ आती हैं
और अपने कोमल स्पर्श से
बड़ी देर तक
इनको
जी भर गुदगुदाती हैं
हँसते हैं पेड़
जब अम्बर में घिरते हैं बादल
वन में नाचते हैं मोर
और तब भी.....
जब बारिश की बूँदें आती हैं
और इन्हें रगड़-रगड़ कर
बहुत देर तक नहलाती हैं
हँसते हैं पेड़
जब इनकी शाख़ों से
लिपटती है धामिन
सुस्ताती है देर तक
घने पत्रों की छाँव में
हँसते हैं पेड़
तब भी हँसते हैं
जब इनकी शाखों पर
चिड़िया आती हैं
बसेरा बसाती हैं
उठती हैं,बैठती हैं
सोती हैं,जगती हैं
चहक-चहक कर गाती हैं
और कभी नील गगन में
फुर्र से उड़ जाती हैं
हँसते हैं पेड़
बहुत जोर-जोर से हँसते हैं
अपना सब कुछ लुटाकर
कंद-मूल,फल-फूल ।