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हर तरफ़ भूख-प्यास की नदियाँ / राम नाथ बेख़बर

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हर तरफ़ भूख- प्यास की नदियाँ
क्या यही हैं विकास की नदियाँ

ऐसी कड़वाहटें हैं मत पूछो
गुम हुई हैं मिठास की नदियाँ

चाँद पूनम का खेत में उतरा
साथ लेकर उजास की नदियाँ

अब भी ज़िंदा हैं दिल के सहरा में
पुरसुकूं चंद आस की नदियाँ

पॉलिथिन ओढ़ती बिछाती हैं
'बेख़बर' बिन लिबास की नदियाँ