भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहो साइकिल ट्रॉफी पाओ / जियाउर रहमान जाफरी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:42, 1 अगस्त 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जियाउर रहमान जाफरी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बोलो ऐसी कौन सवारी
दिखती भी हो प्यारी- प्यारी
नहीं कभी पेट्रोल वो खाये
इधर-उधर पर आए-जाये
घंटी जिसकी टन टन बजती
कदम कदम जो चलती रहती
पायडिल जितना तेज घुमाएं
उतना आगे बढ़ते जाएं
नहीं जरा भी धुआं यहां पर
नहीं तेल का कुआं यहां पर
घट जाती है इससे दूरी
योगा में भी बहुत जरूरी
नहीं ट्रैफिक का डर इसमें
बस दो छोटी टायर इसमें
नहीं जगह भी ज्यादा लेती
सबको रास्ते ये दे देती
खर्च नहीं भी कुछ ज्यादा है
नहीं है खतरा यह वादा है
कहां कभी कुछ पीती खाती
लेकर सिर्फ हवा रह जाती
हैंडल जैसे जिधर घुमायें
हम उस जानिब ही बढ़ जायें
है कितने यह रंगों वाली
लाल, हरी, पीली और काली
नाम अब इसका तुम बतलाओ
कहो साइकिल ट्रॉफी पाओ