भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हंगामा है क्यूँ बरपा / अकबर इलाहाबादी

Kavita Kosh से
220.225.22.195 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 18:31, 15 नवम्बर 2008 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है

ना-तजुर्बाकारी से वाइज़ की ये बातें हैं
uस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है

वाइज़= धर्मोपदेशक

उस मय से नहीं मतलब दिल जिस से है बेगाना
मक़सूद है उस मय से, दिल ही में जो खिंचती है

मक़सूद= मनोरथ

वाँ दिल में कि सदमे दो या जी में के सब सह लो
उन का भी अजब दिल है मेरा भी अजब जी है

हर ज़र्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही से
हर साँस ये कहती हम हैं तो ख़ुदा भी है

अनवार-ए-इलाही= दैवी प्रकाश

सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत के करिश्मे हैं
बुत हम को कहे काफ़िर, अल्लाह की मर्ज़ी है

फ़ितरत= प्रकृति