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बेटे के साथ दुनिया / शिरीष कुमार मौर्य

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उसे आए अभी पाँच ही बरस हुए हैं
और हम दोनों को बत्तीस
लेकिन हम आगे खड़े हो नहीं दिखा पाते
दुनिया उसे
अक्सर वही उठाता है उंगली
किसी भी परिचित या अनजान चीज़ की तरफ़

कुछ ही समय पहले वह खड़ा हुआ था धरती पर पहली बार
उसे बेहद कोमल और जीवंत चीज़ की तरह
इस्तेमाल करता हुआ
डगमगाते चलते थे उसके पाँव
जिन्हें अब वह जमा चुका

हमारी भाषा सीखने से पहले
उसने न जाने कितनी भाषाएँ बोलीं
हमें कुछ न समझता देख
खीझ कर
अक्सर ही हाथ-पाँवों से समझाई
अपनी बात
वह रोया ख़ूब चीख़-चीख़कर
और हँसा दुनिया की सबसे बेदाग हँसी
उसे चोट लगी तो दुनिया थम गई
पहली बार स्कूल गया तो हमने किया उसके लौटने तक
जीवन का सबसे लम्बा इंतज़ार

बिस्तर पर उसे अपने बीच सोतादेख पत्नी ने
कई-कई बार कहा--
देखो तो
दरअसल हमने किया
कितना ख़ूबसूरत प्यार !

हम सोच ही नहीं पाते
कि हम कभी उसके बिना भी थे
इस विपुला पृथ्वी पर
उसी के साथ तो हमारी दुनिया ने आकार लिया

उस के लिए बेहद जोश से भरे ये दिल
काँपते भी हैं कभी-कभी
आने वाली दुनिया में उसके किन्हीं अनजान
मुश्किल दिनों के बारे में
सोचकर

हम शायद कभी रचकर नहीं दे सकेंगे उसे
दुनिया अपने हिसाब की
निरापद और सुकून से भरी
अपने सफ़र तो वही तय करेगा
और एक दिन बाद हमारे
अपने साथ
बेहद चुपचाप
हमारी भी दुनिया रचेगा

फिलहाल तो बैठा दिखाई देता है
बिलानागा
पिता की पसंदीदा कुर्सी पर
कुछ गुनगुनाता
घर के उस इकलौते तानाशाह को
अपदस्थ करता हुआ !