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बस एक ज़िद हूँ तुम्हारी तुम्हारा प्यार नहीं / अमीता परसुराम मीता
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बस एक ज़िद हूँ तुम्हारी तुम्हारा प्यार नहीं
और ऐसे प्यार पे अब मुझको ऐतबार नहीं
इक ऐसे मोड़ पर आ के कहानी रुक सी गई
जहां पे जीत नहीं और किसी की हार नहीं
जो पारसा1 हैं उन्हीं से सवाल है मेरा
बताओ कौन यहाँ पर गुनाहगार नहीं
ये कश्मकश है, किसे अपना राज़दाँ समझें
अजीब दौर है, अब कोई राज़दार नहीं
1.ज़ाहिद