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बोलबात / दोपदी सिंघार / अम्बर रंजना पाण्डेय

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सुना है
दूर दिल्ली में सरगनाओं की बैठक जमी है
बीड़ी-सिगरेट चाय-दारू पी पीकर
'कौन है ये दोपदी ?'

'ये मर्द है, औरत के पास जीभ नहीं जो
कविता बनाए
औरत के पास, बस, बच्चादानी होती है ।'

'अरे भई ये सवर्न है बम्मन बनिया है
दलित आदिवासी
जंगल में चरनेवाले
मैला ढोने वाले
गधा-दिमाग़
वो क्या जाने कविताई'

'छिनाल है जी छिनाल
मर्दों के मुँहलगी है
इससे कविता करती है'

दोपदिया के हाथ तोड़ दो
वो चुप न होगी
इस रांड का मुँह तोड़
वो चुप न होगी
इसका रेप करो
इसकी बिटिया उठवा लो
इसको थाने बुलवा लो
वो चुप न होगी

लाओ लाओ गोली लाओ
गोली से भी चुप न होगी
एक मारोगे सौ जागेंगी
हजार आएँगी
पचास हजार आएँगी
लाख आएँगी करोड़ आएँगी

न सिपाही से डर से न नेताजी के डर से
दोपदी चुप न होगी
चिल्लाती रहेगी लड़ती रहेगी
जन्म लेगी बार बार
बात कहेगी मरती रहेगी ।