Last modified on 11 अगस्त 2023, at 13:09

मिलना / दोपदी सिंघार / अम्बर रंजना पाण्डेय

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:09, 11 अगस्त 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दोपदी सिंघार |अनुवादक=अम्बर रंजन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मिलना मुझे पौने बारह बजे रात
पाटीदार बाऊजी के पुआल ले पीछे
ले आऊँगी
बची हुई दाल
तुम रोटी ले आना

देखो देर मत करना
खतरा बहुत है
कल आ गए थे चार छह वर्दीवाले
तो कितनों की भूख मर गई
कितने बीमार हो गए

वो तो आए थे चिकन-दारू की पाल्टी मनाने

तुम साथ में कोई हथियार रखना हमेशा
और मुँह पर डालके आना कपड़ा
मैं टाँग दूँगी टिफन आगे
इशारे को, समझ के आ जाना पीछे

और कभी नहीं मिली तो घबराना मत न डरना
तमंचा दबने से गोली लगने के बीच
जो टेम है, वहीं है हमारी जिनगी

तुम रोना मत
मिलूँगी जरूर तुम्हें एक रोज
ढूँढ़ना जरूर
मरने में मनख के देर नहीं लगती
मगर मिलूँगी जरुर तुम्हें
चाहे लाश बनके मिलूँ या मिलूँ फरार

आना ठीक पौने बारह बजे ।