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तन्हा कोठरी / राकेश कुमार पटेल
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उस बंद कोठरी की तन्हाई में
जिसकी दीवारों से टकराती हैं
दर्द भरी सर्द चीखें
कोई ये न बताना मुझे कि
अपनों से दूर आज
कोई फिर गुजर गया
चुपके से
और फिर उससे लिपटकर
रो नहीं पाया कोई चाहकर भी
ये सदायें, ये चीखें
ये तन्हाई और बेबसी
रोज-रोज बहुत परेशान करती हैं मुझे।