भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माँ अब भी जोहती है / राकेश कुमार पटेल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:26, 23 अगस्त 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राकेश कुमार पटेल |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऐसा नहीं है कि माँ को कोई दुःख है
लेकिन जब घर जाकर वापस लौटता हूँ
माँ रोती है
माँ तब भी रोई थी
अपने नीम के पेड़ के नीचे खड़े होकर
अपने घुंघट में आंसुओ को छुपाकर
उस दूर कोने तक जहाँ से मुड़ने के बाद
माँ नहीं दिखती थी
हममें हिम्मत नहीं थी कि मुड़के देख सकें माँ को
माँ हर बार रोती थी
गठरियों में बाँधते हुए चावल, आटा और दाल
शहर पहुँचते ही
दीवार में टंगे कैलेंडर की तारीखों में
खिंच जाता था एक गोला
अगली बार कब जाना है
माँ से मिलने
यह जानते हुए भी कि माँ फिर रोएगी
माँ एक-एक कर हमको भेजती रही शहर
और रोती रहती है हर बार
हमको विदा करके ।