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राजा मूँछ मरोड़ रहा है / जगदीश व्योम

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राजा मूँछ मरोड़ रहा है
सिसक रही हिरनी

बड़े-बड़े सींगों वाला मृग
राजा ने मारा
किसकी यहाँ मजाल
कहे राजा को हत्यारा
मुर्दानी छाई जंगल में
सब चुपचाप खड़े
सोच रहे सब यही कि
आख़िर आगे कौन बढ़े
घूम रहा आक्रोश वृत्त में
ज्यों घूमे घिरनी
सिसक रही...

एक कहीं से स्वर उभरा
मुँह सबने उचकाए
दबे पड़े साहस के सहसा
पंख उभर आए
मन ही मन संकल्प हो गए
आगे बढ़ने के
जंगल के अत्याचारी से
जमकर लड़ने के
पल में बदली हवा
मुट्ठियाँ सबकी दिखीं तनी
सिसक रही...

रानी ! तू कह दे राजा से
परजा जान गई
अब अपनी अकूत ताक़त
परजा पहचान गई
मचल गई जिस दिन परजा
सिंहासन डोलेगा
शोषक की औक़ात कहाँ
कुछ आकर बोलेगा
उठो ! उठो ! सब उठो !
उठेगी पूरी विकट वनी
सिसक रही हिरनी ।