भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
और प्रेम मर जाता है / कल्पना पंत
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:09, 8 सितम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कल्पना पंत |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
संगीत सुनती हूं
आजि झोर -झोर मुखर बादोर दीने
कानों में तुम्हारे शब्द बजते हैं
बारिश बरसती है झर -झर
नेह भी बरसता है ऐसे ही
बारिश बरस कर धरती को संतृप्त करती है
उसे जीवन देती है
नेह को भी
होना चाहिए जीवनदायी
जीवनदायी होना चाहिए न?
तुम्हारे ही शब्द हैं
केवल अपने लिए चाहना
बंजर कर देता है दिलों को
मन की पलकों को जगाने वाला
सूखे में जीवन लाने वाला
उठता है धरती की कोख से
किसी की आंख का आंसू न पी सके
ज़ख्म को मरहम न दे सके
वह जो भी है प्रेम नहीं है
वह प्रेम जो लड़ता है
जंगल के रास्ते तलाशता है
जो संघर्ष कर पाता है
वही प्रेम है
वही नेह है
नेपथ्य में फिर बजता है
जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे
और प्रेम मर जाता है।