जिन घाटों को
छोड़ चली हो
अविरल धारा
तेरी गंगा,
सोच की उन
घाटों के उपर
इस बिछड़न से
क्या बीतेगी?
जिन नयनों ने
अपलक ढोया
था दुःखों का
भार हमेशा,
उन नयनों में
अश्रु-धारा
उन नयनों पर
क्या बीतेगी?
जिन हृदयों ने
प्रेम ना देखा
शुष्क रहे जो
जीवन भर ही,
प्रेम विह्वल हो
विरह से सोचो
उन हृदयों पर
क्या बीतेगी?
आने वाली पूरनमासी
नव जोड़े में
कौमुदी सम तुम
डोली पर बैठी वधु-बाला
प्रियतम संग प्रयाण करोगी,
कर जाओगी, सून ये गालियाँ
इन गालियों पर
क्या बीतेगी
सोचो मुझपर
क्या बीतेगी?