भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोहे-1 / उपमा शर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:42, 14 सितम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उपमा शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} Category...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1.
काम सभी तब पूर्ण हों, मिल-जुल करें प्रयास।
दीपक, बाती, तेल ज्यों, मिलकर रचें उजास।

2.
गूँथो निर्मल नेह से, प्रीत भरा अनुबंध।
पर दूरी कुछ बीच में, बचा रखे सम्बंध।

3.
अगर भाव कोमल मिले, निर्मल मन भी साथ।
तब मन-मंदिर आपका, ईश धरें सिर हाथ॥

4.
तम घमंड में चूर था, मिली करारी मात।
इक नन्हें से दीप ने, रौशन की जब रात।

5.
कैसे आता ये भला अंधियारे को रास।
मुट्ठी भर जुगनू मिले, फैला दिया प्रभास।

6.
आस और विश्वास से, बँधती जीवन डोर।
रात अमावस बीत कर, आती सुंदर भोर।

7.
कराहटें हैं दर्द की, मचती चीख-पुकार।
अपने दुख फिर कम लगे, देखें जब संसार।

8.
अलग-अलग मानव सभी और अलग पहचान।
पाँच उँगलियाँ एक-सी, कब होतीं श्रीमान।

9.
दृष्टि पास सबके रही, दृष्टिकोण असमान।
इक-दूजे से यूँ अलग, तभी रहा इंसान।

10.
तुलना कर-कर यूँ कभी, होना न परेशान।
एक वृक्ष के फल कहाँ, दिखते कभी समान।