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क्षणिकाएँ / उपमा शर्मा

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1.
तुम!
चुनते रहे मेरे लिए
शब्दों के तीर,
और

मैं
चुनती रही
स्नेह के फूल,

यही है
प्रेम मेरे लिए।

2.
तय
कर लिए थे हमने
जन्मों के फासले,

पर
जो नहीं हुई तय
वो थी
मन से मन की दूरी।

3.
फिसलती रही
जैसे मुट्ठी से
रेत

वैसे फिसलते रहे
हृदय की भित्ति से

धीरे-धीरे
तुम

4.
एक्वेरियम में घूम रही थीं
रंग-बिरंगी
बाँच रहीं थीं अपने दुख
यह भी है कोई जिंदगी

हमेशा चारदीवारी में कैद
यकायक
भागता हुआ आया एक बच्चा
टकराया एक्वेरियम से
अब जमीन पर पड़ी थी
मछलियाँ
पर वह निष्प्राण थीं