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ये दिन भी जाएगा गुज़र / प्रदीप शर्मा

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ये दिन भी जायेंगे गुज़र
आयेंगी खुशियां लहराकर
भर देंगी जीवन, धीरज धर।
ये दिन भी जायेंगे गुज़र।

कहती है हमें शबनम
कब रात रही हरदम
ऐ दिल न मचल
तू ज़रा सम्भल
धड़कन न बढ़ा
कुछ देर तो थम
अभी होती ही है उजली सहर।
ये दिन भी जायेंगे गुज़र।

कहता है नदी का जल
मेरी राह नहीं है सरल
मैं गगन से गिरा
पर्वतों से घिरा
बहता ही रहा हूं
मैं हरदम
अब आयेगा नीला सागर।
ये दिन भी जायेंगे गुज़र।