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अंतर्मन के उन्माद / शिव रावल
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रूप देखे अल्फाज़ों के आईने
पल-पल तलाशे मनचाही हसरतें,
अंतर्मन की पगडंडी पर देखो तो
उन्माद रखते हैं पैर भटके-भटके,
होंश को लगा बेसुधी का ग्रहण
बैरन तन्हाई भी आज ढूँढे करवटें,
'शिव' को तलब किस तिशनगी की
उम्र भी गुजरने को मांगे वायदों के वास्ते