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ऐसा बदला हुआ ये मंज़र है / पंकज कर्ण
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ऐसा बदला हुआ ये मंज़र है
गाँव में अब न गाँव-सा घर है
उसको क़ातिल कहा है मुंसिफ़ ने
हाथ जिसके न कोई खंज़र है
कौन राजा है कौन रंक वहाँ
एक जैसा सभी का बिस्तर है
आप दावे से कह नहीं सकते
कौन बेहतर है कौन कमतर है
इस ज़माने से सीख ली 'पंकज'
दुश्मनी दोस्ती से बढ़कर है