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गुलाब और बैल / ज़करिया मोहम्मद / अनिल जनविजय

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रात में गुलाब काला हो जाता है
उससे उड़ता है
एक काला बैल
और अपने रुपहले सींगों से
बींध देता है त्वचा

रात में गुलाब काला हो जाता है
ख़ूनम-ख़ून हो जाता है
अभागा राहगीरों
बैल के सींगों से टपक रहा है रक्त

रात में काला हो जाता है गुलाब

पर दिन के उजाले में
इस गुलाब का काला बैल
घात लगाकर बैठी
एक छाया-सा दिखता है

इसलिए गुलाब चुनते हुए
सावधान रहो तुम
पूरी तरह से ख़बरदार

एक खंजर लेकर आओ
रखो उसे अपने दिल के क़रीब
काटना है
वह बैल

पड़ा रहता है जो
सारा दिन
पंखुड़ियों में लिपटा
गुलाब के दिल के भीतर ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी अनुवाद में पढ़िए
           Zakaria Mohammed
        The Rose And The Bull

At night the rose is dark
At night a black bull
flies from the rose
It pierces the skin
with its two silver horns

At night the rose is dark
The spilt blood
of the hapless passer-by
drips from its horns

At night the rose is dark

But in daylight
the rose's black bull
is only a shadow
lying in ambush

So beware
when you pick
the rose
Beware

Carry a dagger
close to your heart
to butcher
that bull

which lies
all day
folded in petals
at the heart of the rose