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आत्मा का विस्तार (द एक्सपेंन्स आफ स्पिरिट) सॉनेट/ विलियम शेक्सपियर / विनीत मोहन औदिच्य

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अत्यन्त लज्जाजनक होता व्यापक शक्ति का व्यर्थ क्षरण
सम्भोग की इतिश्री से रतिक्रिया अन्त तक वासना रहे पास
निर्मम कामुकता कराती वचन भंग, दोषारोपण, लाती मरण
असभ्य, अतिरंजित, जंगली, जिस पर न हो सकता विश्वास ।

सुखानिभूति उपरान्त अविलम्ब उपजाती अप्रिय विरक्ति
पूर्व में खोजी जाती व्यग्रता से, लक्ष्य सिद्धि उपरान्त
होती कारक घृणा का, ज्यों मत्स्य की प्रलोभन अनुरक्ति
जो जाल बिछाया जाता प्राप्तकर्ता को करने अशान्त ।

अनुसरण और प्राप्ति में करती है ये वासना उन्मत्त
पाकर, पाते हुए और पाने की खोज में टूटती हर सीमा
प्राप्ति कराती स्वर्गीय अनुभूति, लाती व्यथा होकर प्रदत्त
पूर्व में सम्भावित आनन्द, समाप्ति पर शेष रहता स्वप्न धीमा ।

विश्व को है सर्वविदित, फिर भी कोई न जान पाता !
त्याग देता मनुज स्वर्ग जो इसे, नरक-द्वार तक ले जाता ।।