भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिन्हें रौशनी की ज़रूरत / हरिवंश प्रभात

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:18, 1 नवम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंश प्रभात |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिन्हें रौशनी की ज़रूरत हो आये।
अँधेरे में हमने है दीपक जलाये।

अँधेरे का कोई कफ़न अब न ओढ़े,
नया ऐसा सूरज कोई तो उगाए।

ऐ काँटों पर जीवन बसर करने वालों,
ज़रा मुस्कुराओ, सुदिन आज आए।

सितारों-सा खेलो, बहारों-सा झूमो,
यहाँ अब न कोई भी आँसू बहाए।

ये घबराई सूनी-सी बिरहन की आँखें
वो साजन को चुपके-ही चुपके बुलाए।

वही तेरा सच्चा है ‘प्रभात’ साथी,
जो दुःख के समय में तेरे काम आए।