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डोलती एक नाव-सी / हरिवंश प्रभात
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डोलती इक नाव-सी, मझधार पर ये ज़िन्दगी।
चल रही तलवार की इक धार पर ये ज़िन्दगी।
कल्पना के पंख लेकर उड़ते हैं आकाश में,
जल रही है आग की बौछार पर ये ज़िन्दगी।
हमने ख़ुद को भी मिटाकर आपको पाया सनम,
बस टिकी है आपके ही प्यार पर ये ज़िन्दगी।
ज़िन्दगी जीने की ख़ातिर, यह सबब मालूम है,
फिर भी मरने के मधुर इकरार पर ये ज़िन्दगी।
ज़िन्दगी मायूस हो सकती, गुलों की सेज पर,
मुस्कुराती हमने देखी, ख़ार पर ये ज़िन्दगी।
रहना है ‘प्रभात’ ज़िंदा, गर तुझे संसार में,
अच्छे रख स्वभाव और किरदार पर ये ज़िन्दगी।