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जो थे रौनक भोर के / हरिवंश प्रभात

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जो थे रौनक भोर के तारे हुए।
हम सामाजिक न्याय के मारे हुए।

इस वतन में इस चलन को क्या कहें,
मुल्क में जब एक मत सारे हुए।

अपनी आज़ादी में बस इक खोट है,
योग्यता पर संख्या बल वारे हुए।

झुलसे तन जलती चिताएँ देखिए,
बेकसी के हैं सभी मारे हुए।

चुप है इंसाँ बोलती दीवार हैं,
ख़ौफ़, दहशत-वाले सब नारे हुए।

हारकर भी तुम ही जीते प्यार में,
जीत कर भी ‘प्रभात’ है हारे हुए।