भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम शरद की पूर्णिमा हो / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:09, 3 नवम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंश प्रभात |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तुम शरद की पूर्णिमा है, चाँदनी अमृत भरी।
तेरा दर्शन पान जीवन दायिनी अमृत भरी।
तेरा चेहरा चाँद-सा और संगमरमर-सा बदन,
मेरा घर है तेरे दम से रौशनी अमृत भरी।
फूल, पत्ते, पेड़ पर दिल के ही सब सर सब्ज़ हैं
कर दी सर पर मेरे तूने ओढ़नी अमृत भरी।
एक दूजे के लिए जब, हो गए हम एक हैं,
फिर लिखे हम इक कहानी कामिनी अमृत भरी।
जितना देखूँ देखने की और ललक बढती गई,
पेश करने की अदा है, मोहनी अमृत भरी।
अब तो अमृत पान की बेला अधर पर आ गई,
छेड़ो कोई धुन मिलन की रागिनी अमृत भरी।
चार दिन की चाँदनी की ‘प्रभात’ बातें क्या करे,
हर घड़ी तुमसे हुई सुख दायिनी अमृत भरी।