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ख़ुद ही जो अपने आपको / हरिवंश प्रभात
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ख़ुद ही जो अपने आपको पहचानते नहीं
कैसे हैं दूसरे, वह कभी जानते नहीं।
काम जिनका सिर्फ़ है बुरा ही जहान में,
अच्छाइयों को अच्छा कभी मानते नहीं।
देंगे समाज को नहीं अच्छा वह रास्ता
औरत की उसमें जो न जगह मानते नहीं।
मरना जो जानते नहीं जीने के वास्ते,
हरगिज वह प्राण निछावर गरदानते नहीं।
जिनकी खुली निगाहें हैं, प्यारे सभी हैं लोग
अपना लहू में हाथ वह कभी सानते नहीं।
अनमोल ज़िन्दगी का वह समझेंगे अर्थ क्या,
जीवन की अहमियत जो कभी जानते नहीं।
‘प्रभात’ काँपते हैं जो कठिनाई देखकर
दीवार मुश्किलों की वही फाँदते नहीं।